Saturday, 17 December 2016

सदियों से भारत की संस्कृति नैतिक मूल्यों व गुणों से परिपूर्ण है

सदियों से भारत की संस्कृति नैतिक मूल्यों व गुणों से परिपूर्ण है। हमारी संस्कृति नैतिक आचार-विचार व व्यवहार का पालन करने के लिए सदैव प्रेरित करती है, परंतु दुःखद बात है कि आज समाज और जीवन के हर एक क्षेत्र में नैतिक मूल्यों का ह्वास तेजी से हो रहा है।
कई लोग यह भी प्रश्न करते हैं कि आखिर नैतिकता का अभिप्राय क्या है? नैतिकता का आशय है- नीति के अनुसार। यानी हमारे विचार, कर्म और व्यवहार सद्गुणों से प्रेरित हों और वे धर्म, संस्कृति व राष्ट्र के लिए हितकारी हों।
आध्यात्मिक तत्वों व शक्तियों का संवर्धन करने वाले ऐसे विचारों, व्यवहारों व गुणों को नैतिकता कहते हैं। अत्यंत विकट परिस्थितियों में भी आध्यात्मिक गुणों का पालन करते हुए अपने कर्म विशेष के प्रति जो सदाचरण कायम रख सके, वही नैतिक है।
ऐसा तभी संभव है, जब मनुष्य अपने भीतर के अहंकार, स्वार्थ व स्वनिर्मित आत्मघाती भय से परे उठने की साधना करे। धर्म, राष्ट्र व संस्कृति को अपने जीवन की धुरी बनाए। नैतिक मूल्य हमें उचित-अनुचित आचार व्यवहार का ज्ञान कराते हैं। हमारी संस्कृति महान है।
हमारे इतिहास में ऐसे अनेक ऋषि-मुनियों, महापुरुषों व श्रेष्ठ साधकों के उदाहरण मिलते हैं, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन नैतिक मूल्यों के रक्षार्थ समर्पित कर दिया और संपूर्ण समाज को जीवन के प्रति एक नई दिशा दी।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम नैतिकतामय जीवन के आदर्श प्रतीक हैं। उन्हीं के पदचिह्नों पर चलते हुए भक्तिपूर्ण भाव से अपने आचरण को नैतिक रखते हुए हनुमानजी ने अमरत्व प्राप्त कर लिया।
नैतिकतापूर्ण व्यवहार की अभिव्यक्ति हमें महर्षि वशिष्ठ, महर्षि दधीचि,स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, जैसे महानतम राष्ट्र साधकों के जीवन में दिखती है। वर्तमान में योगऋषि स्वामी रामदेव व् आयुर्वेद शिरोमणि आचार्य बालकृष्ण ने जैसा राष्ट्रहित में जैसा कार्य कर दिखाया और जिस तरह से व्यक्तिगत जीवन में  नैतिकता को आधार बनाकर भारतीय संस्कृति को सर्वोच्च शिखर पर ले जाने की स्पष्ट दूरदृष्टि के साथ तन-मन-धन से अखंड प्रचंड पुरषार्थ कर रहे हैं निश्चय ही पूर्व के हमारे महापुरषो से तुलना कोई अतिश्योक्ति नहीं होंगी।
नैतिकता के बगैर जीवन में आत्मोन्नति संभव नहीं।
नैतिकतापूर्ण जीवन जीकर, दूसरों के समक्ष आदर्श प्रस्तुत करके ही इस जीवन में सफलता के सही मार्ग का चयन कर सकते हैं। वैसे भी दुनिया में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो, जो विफलता चाहता हो। नैतिकता से मनुष्य के साथ-साथ समाज और राष्ट्र का भी उत्थान होता है।
जो समाज नैतिकता से विमुख हो जाता है, उसकी अवनति तय है। इसलिए सभी लोगों को नैतिकता के मार्ग पर चलना चाहिए।
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