मनुस्मृति’ में लिखा है—
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवत:।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।। (मनुस्मृति,3/56)
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवत:।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।। (मनुस्मृति,3/56)
अर्थात् ”जहाँ स्त्रियों का आदर किया जाता है, वहाँ देवता रमण करते हैं और जहाँ इनका अनादर होता है, वहाँ सब कार्य निष्फल होते हैं। जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता भी निवास करते हैं।
नारी स्वयं शक्ति का एक रूप है। वह मनुष्य जाति में ऊर्जा प्रवाह का प्रमुख माध्यम है, जिसके बिना संरचना, पोषण, रक्षा और आनंद की कल्पना नहीं की जा सकती। भारतीय दर्शनशास्त्र में देवी मां दुर्गा के माध्यम से नारी-शक्ति की महत्ता स्थापित की गयी है। जब स्वयं देवादि देव महादेव ने माँ शक्ति को स्वयं में धारण किया और अर्धनारीश्वर कहलाये। तो नारी शक्ति का अलोकिक प्रकाश तीनों लोक में फैल गया । इसलिए सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में चाहे देव रूप हो, दानव हो, मानव हो या कोई जीव बिना मादा के जीवन उत्पत्ति संभव नहीं। ये एक ऐसी शक्ति है, जिसके बिना भविष्य की आशा ही नहीं जा सकती और ना ही कभी सम्पूर्ण पोषण को प्राप्त किया जा सकता है, शुरुआती जीवन उत्पति के समय रक्षा का अहसास बिना इस शक्ति के अधूरा है और न ही सांसारिक जीवन जीते हुए आनंद की कल्पना की जा सकती है। पिता के न रहने से सन्तान गऱीब हो सकती है पर माता उनका पालन-पोषण ठीक-ठाक कर देती है। माता के बिना गऱीब न होने पर भी वह दु:खी हो जाती है। बच्चों का माता के बिना मन, मस्तिष्क और जीवन का सन्तुलन ही बिगड़ जाता है। बच्चों का भविष्य, आने वाले समाज का भविष्य, नारी पर निर्भर है।
भारतीय संस्कारों में नारी को पुरुष से, माता को पिता से पहले स्थान दिया जाता है जैसे माता-पिता, स्त्री-पुरुष, राधा-कृष्ण, सीता-राम, लक्ष्मी-नारायण, भवानी-शंकर आदि। चाणक्य के अनुसार जिस गृहस्थाश्रम में आनन्दपूर्वक गृह, बुद्धिमान पुत्र, प्रियवादी पत्नी, इच्छापूर्ति के लिए पर्याप्त धन, अपनी पत्नी से प्रीति, आज्ञाकारी सेवक, अतिथि सत्कार, देव-पूजन, प्रतिदिन मधुर भोजन तथा सत्पुरुषों के संग-सत्संग का सुअवसर सदा सुलभ होता है, वह धन्य है। नारी तो एक शाश्वत चिरन्तन दिव्य रूप है। जिसकी अनुभूति मात्र हो सकती है, अभिव्यक्ति नहीं। और वह अनुभूति हर उस व्यक्ति को होती है जो एक पुत्र है, पति, पिता या भाई है, इसकी अनुभूति प्रत्येक उस व्यक्ति को होती है जो आत्मीयता के धरातल पर आदमी है या हर उस जीव को होती है जो जैव धरातल पर चैतन्य है, क्योंकि नारी रूप की पूर्णता मातृरूप में होती है।
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