स्वदेशी की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ते है :- विश्व स्तरीय हर्बल फूडपार्क देश के अलग अलग जगहों में शिलान्यास आरम्भ भी हो गया है इससे एक तरफ जहां प्रत्यक्ष १०-२० हजार रोजगार मिलेंगे वहीँ उस क्षेत्र के लाखो किसानों की अपनी आय में वृद्धि होगी। साथ ही जैविक व् आयुर्वेदीय उत्पादन उपयोग करने करोडो लोगों को स्वास्थ्य लाभ मिलेगा। महाराष्ट्र के 11 sep.2016 को नागपुर (मिहान), आसाम के तेजपुर 6 Nov. 2016, अहमद नगर (NEVASA) में 16 Nov.2016 इसी क्रम में PTANJALI DAIRY UDHYOGH को नीव भी रखा जा चूका है। और साथ ही 5500 कड़ोड़ की लगत से कृषि पर आधारित विशालऔद्योगिक इकाई 12 February, 2017 इंदौर, मध्य-प्रदेश व् 14 February, 2017 नोयडा में स्थापना परम पूज्य योग ऋषि स्वामी रामदेव जी महाराज व् परम वन्दनीय आचार्य श्री जी पावन कर कमलो से से होना सुनिशित है।
समर्थ लोग हो या नेतागण हो स्वदेशी की नारा तो दे सकते है जनता (उपभोक्ता) के पास विकल्प नहीं है। वर्तमान में ही दीपावली के समय आप सबने देखा होगा की पाकिस्तान साथ दे रहे चीन का भारी विरोध उसके सामानों को लेकर हुआ है जिसका असर सकारात्मक भी दिखने लगा है तो राष्ट्र भक्ति आज भी कमी नहीं है जरुरत है सही नेतृत्व की जो स्वामी जी दिन - रात अपने सहित अपने संगठन से जुड़े लोगों को निशुल्क व् जहा जरुरत है पेमेंट पे रखकर इस ओर तीव्र गति से बढ़ रहे हैं। ये हम सबका ही नहीं अपने पूर्वजों व् क्रांति वीरो की भी यहीं सपना था।
आइये थोड़ा सा पीछे अपने इतिहास को देखते है - स्वदेशी आन्दोलन भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का एक महत्वपूर्ण आन्दोलन, सफल रणनीति व दर्शन था। स्वदेशी का अर्थ है - 'अपने देश का'। इस रणनीति के लक्ष्य ब्रिटेन में बने माल का बहिष्कार करना तथा भारत में बने माल का अधिकाधिक प्रयोग करके साम्राज्यवादी ब्रिटेन को आर्थिक हानि पहुँचाना व भारत के लोगों के लिये रोजगार सृजन करना था। यह ब्रितानी शासन को उखाड़ फेंकने और भारत की समग्र आर्थिक व्यवस्था के विकास के लिए अपनाया गया साधन था।
वर्ष 1905 के बंग-भंग विरोधी जनजागरण से स्वदेशी आन्दोलन को बहुत बल मिला। यह 1911 तक चला और गान्धीजी के भारत में पदार्पण के पूर्व सभी सफल अन्दोलनों में से एक था। अरविन्द घोष, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, वीर सावरकर, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय स्वदेशी आन्दोलन के मुख्य उद्घोषक थे। आगे चलकर यही स्वदेशी आन्दोलन महात्मा गांधी के स्वतन्त्रता आन्दोलन का भी केन्द्र-बिन्दु बन गया। उन्होने इसे "स्वराज की आत्मा" कहा।
स्वदेशी अब नारा नहीं। जरुरत स्वयं की जीवन में आगे बढ़ने की।
स्वदेशी अब नारा नहीं। जरुरत स्वयं की जीवन में आगे बढ़ने की।
अति उत्तम।
ReplyDeleteDhanyvad
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