अखंड विचार प्रवाह
हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम् |
तत्त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये - Ishopanishad ||15||
मनुष्य के कर्त्तव्य का विधान करते हुए उपनिषद् ने मनुष्यों को चेतावनी दी है कि इन कर्त्तव्यों का पालन करने में सचाई (वास्तविकता = Reality) होनी चाहिए | अन्यथा इनकी उपयोगिता न रहेगी | परन्तु संसार में सचाई के छिपा देने के भी साधन मौदूद हैं जिनसे वह दबा दी जाती है | उन्हीं साधनों की ओर मन्त्र में संकेत किया गया है |
सुवर्णमय पात्र (संसार की चमक दमक वाली चीजें) ही वे पदार्थ हैं, जो मनुष्य को प्रलोभन में लाकर उसे सत्य पथ से विमुख कर दिया करते हैं मनुष्य क्यों चोरी करता है ? धन के लालच से | मनुष्य क्यों किसी को धोखा देता है ? क्यों किसी को ठगता है ? धन के लालच से | मनुष्य क्यों कचहरियों में झूठी गवाही देता है ? धन के लालच से | अभी पश्चिमी युद्ध के समय पश्चिमी राज्य-कर्मचारियों ने क्यों झूठ बोल बोलकर अन्यों को धोखा देने का अपना मनतव्य और मुख्य कर्त्तव्य बना रखा था | इसका भी कारण वही धन का प्रलोभन है |
तत्त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये - Ishopanishad ||15||
मनुष्य के कर्त्तव्य का विधान करते हुए उपनिषद् ने मनुष्यों को चेतावनी दी है कि इन कर्त्तव्यों का पालन करने में सचाई (वास्तविकता = Reality) होनी चाहिए | अन्यथा इनकी उपयोगिता न रहेगी | परन्तु संसार में सचाई के छिपा देने के भी साधन मौदूद हैं जिनसे वह दबा दी जाती है | उन्हीं साधनों की ओर मन्त्र में संकेत किया गया है |
सुवर्णमय पात्र (संसार की चमक दमक वाली चीजें) ही वे पदार्थ हैं, जो मनुष्य को प्रलोभन में लाकर उसे सत्य पथ से विमुख कर दिया करते हैं मनुष्य क्यों चोरी करता है ? धन के लालच से | मनुष्य क्यों किसी को धोखा देता है ? क्यों किसी को ठगता है ? धन के लालच से | मनुष्य क्यों कचहरियों में झूठी गवाही देता है ? धन के लालच से | अभी पश्चिमी युद्ध के समय पश्चिमी राज्य-कर्मचारियों ने क्यों झूठ बोल बोलकर अन्यों को धोखा देने का अपना मनतव्य और मुख्य कर्त्तव्य बना रखा था | इसका भी कारण वही धन का प्रलोभन है |
निदान सत्यता से विमुख होने के ये और इसी प्रकार के प्रलोभन ही कारण हुआ करते हैं | इसीलिए मन्त्र में प्रार्थना की गयी है कि पूषन् (पालक ईश्वर) इस प्रलोभन का आवरण सत्यता के ऊपर से उठ जाय, जिससे सत्यता हमसे और हम सत्यता से पृथक न हों | सत्यता का इतना मान क्यों है, केवल इसलिये कि सत्यता का ही दूसरा नाम धर्म है | बृहदारण्यकोपनिषद् में लिखा है